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अंश

ansh

अनुवाद : विष्णु खरे

मिक्लोश राद्नोती

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और अधिकमिक्लोश राद्नोती

    मैं एक ऐसे ज़माने में इस धरती पर रहा

    जब आदमी इतना गिर गया था

    कि वह अपनी मर्ज़ी से दूसरों की जान लेता था, मज़े के लिए, किसी के

    हुक्म से नहीं

    उसकी ज़िंदगी पागल इरादों से बनी थी

    वह झूठे ख़ुदाओं में यक़ीन करता था, बदगुमान, उसके मुँह से फेन

    गिरता था।

    मैं एक ऐसे ज़माने में इस धरती पर रहा

    जब विश्वासघात और हत्या का आदर होता था

    ख़ूनी, ग़द्दार और चोर हीरो थे

    और जो चुप रहता था और ताली नहीं बजाता था

    उससे ऐसी नफ़रत की जाती थी जैसे उसे कोढ़ हो।

    मैं एक ऐसे ज़माने में इस धरती पर रहा

    जब अगर एक आदमी साफ़-साफ़ कह देता था तो उसे छिपना पड़ता था

    और शर्म से अपनी मुट्ठियाँ चबानी पड़ती थीं

    मुल्क पागल हो गया था—ख़ून और गलाज़त में धुत

    अपने भयानक अंजाम पर ख़ुश होता था

    मैं एक ऐसे ज़माने में इस धरती पर रहा

    जब माँ अपने ही बच्चे पर एक लानत थी

    औरतें अपने हमल गिराकर ख़ुश होती थीं

    टेबिल पर रखे गाढ़े ज़हर के प्याले से झाग उठता था

    और जो ज़िंदा थे वे ताबूत में क़ैद सड़ते हुए मुर्दों से रश्क करते थे

    मैं एक ऐसे ज़माने में इस धरती पर रहा

    जब कवि भी चुप थे

    और इसाइया की प्रतीक्षा कर रहे थे—

    भयानक शब्दों के जानकार उस पैग़ंबर की—

    क्योंकि सिर्फ़ वही एक सही शाप दे सकता था।

    स्रोत :
    • पुस्तक : प्यास से मरती एक नदी (पृष्ठ 222)
    • संपादक : वंशी माहेश्वरी
    • रचनाकार : मिक्लोश राद्नोती
    • प्रकाशन : संभावना प्रकाशन
    • संस्करण : 2020

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