Font by Mehr Nastaliq Web

सायं संध्या

sayan sandhya

अनुवाद : हनुमच्छास्त्री अयाचित

के. वी. रमणा रेड्डी

अन्य

अन्य

के. वी. रमणा रेड्डी

सायं संध्या

के. वी. रमणा रेड्डी

और अधिकके. वी. रमणा रेड्डी

    तुमने देखा है? पश्चिम दिशा, अस्तगत सूर्य की

    स्वर्णिल कांति से

    चंद्रमा की आरती उतार रही है

    आकाश में विचरण करने वाले मेघ

    कपूर की आरती से निष्क्रांत धुएँ की लहरों के सदृश हैं

    काल भुजंग की कुटिल गतियों के समान,

    उनकी गति है

    मनुष्य की कल्पना के सदृश हैं

    लताओं की भाँति नीरव रूप से चलते हैं

    नक्षत्र रूपी रत्नों को अपने फणों पर धारण करते हैं

    चित्र-विचित्र रूप धारण करते हैं

    पश्चिम दिशा रूपी वृक्ष पर

    चढ़ बैठते हैं

    पश्चिम के प्रांगण में जाने किस बुद्धिमती स्त्री ने

    मणियों का चौक पूरन किया है

    सायंकाल के वायुस्पर्श से

    किसी साब्राणी जैसा परिमल निकल रहा है

    वृक्षों के बीच में से दर्शन देने वाला संध्याकाश

    कैसा अपूर्व मनोहर चित्र है

    श्रेणीबद्ध होकर चलने वाले श्वेत विहंगों का विहार

    मन में कितना संभ्रम पैदा करता है

    कवियों के लिए इसमें कितनी आनंद सामग्री भरी पड़ी है

    भावना से बढ़कर 'नास्ति' को

    'अस्ति' में कौन परिवर्तित कर सकता है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : भारतीय कविता 1954-55 (पृष्ठ 413)
    • रचनाकार : के. वी. रमणा रेड्डी
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

    रजिस्टर कीजिए