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परछाइयाँ

parchhaiyan

अनुवाद : शशी मुदीराज

देवरकोण्ड बालगंगाधर तिलक

अन्य

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और अधिकदेवरकोण्ड बालगंगाधर तिलक

    बहना!

    मत करो तुम क्रोध इन पर

    मत करो घृणा—

    चाहे कुछ कहा तुम्हें लांछित-अपमानित किया

    स्त्री के लिए साहस है व्यर्थ कहा

    तो भी

    बहना!

    ये सब भयभीत जन

    भय है भविष्य का, भय है समाज का

    विगत में विगलित मनुष्य ये

    बीते हुए समय के साये हैं।

    बहना!

    ये सब हैं पूँछ कटे चूहे

    बिल से

    बाहर आने में असमर्थ—

    भीतर ही भीतर चक्कर काटते

    मूर्खता के बलाधिपति

    अविनाशी अविवेक में

    ये सब मध्यवर्गीय जन—

    प्रहरी सामाजिक रूढ़ियों के

    धनिकों के स्वेच्छाचार के नैतिक भाष्यकार

    पुजारी भग्न मंदिरों के

    बहना

    ये सब हैं आधे मनुष्य—

    शेष आधे दमित भय से बाधग्रस्त

    महाभारत-भागवत पढ़ते

    पाप-पुण्य का विभाजन करते

    ‘डेली पेपर’ पलटते

    ख़ुश रहने का स्वाँग भरते

    बासी कल की बेस्वाद बातें करते

    मंद-मंद होंठों में मुसकुराते

    खड़े नहीं हो पाते दृढ़ता से

    काँच के टुकड़े सब ये

    बिखरे हुए मौन मोती

    छल-कपट से अनजान कपोतों के झुंड ये

    अपने को आप छलते विद्यार्थी विदूषक ये

    अपनी डाल आप काटते अज्ञानी अनुयायी ये!

    बहना!

    मत जाओ इन्हें छोड़

    सब हैं तुम्हारी संतान—

    चिर भूखे कष्टों के टीले ये

    नीतियों को ग्रंथों में रटते

    निर्धनता में हरियाली की शोभा निरखते

    अधीर अपनी पत्नियों को साहस का उपदेश देते

    कायर अपने स्वभाव को धर्म का नाम देते

    बोझ तले डरे-डरे जी रहे इनके बीच

    लगाना है 'डायनामाइट’

    घुमाना है 'डायनेमो'

    जानना है कालरात्रि में कंकालों के कहे भेद

    समझना है रास्ते के बगल में खड़े ठूँठ का दुःख

    पकड़ना है साँपों को छिपे जो हरियाली में

    समेटना है आज के अँधेरे को—

    कल की सुबह के लिए।

    बहना!

    चलूँ मैं

    अँधियारा घिर रहा

    ऊँची फुनगी में अटक गया है नक्षत्र

    शिथिल साँध्य गगन करता है रक्त-वमन

    राह बीहड़, दूर है घर

    हाथ में दीपक नहीं, साहस ही रक्षा-कवच।

    स्रोत :
    • पुस्तक : शब्द से शताब्दी तक (पृष्ठ 48)
    • संपादक : माधवराव
    • रचनाकार : देवरकोण्ड बालगंगाधर तिलक
    • प्रकाशन : आंध्र प्रदेश हिंदी अकादमी
    • संस्करण : 1985

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