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भौतिक विज्ञान

bhautik vigyan

हरिओम राजोरिया

हरिओम राजोरिया

भौतिक विज्ञान

हरिओम राजोरिया

पुरोहित बनाना चाहते थे पिता

पर भौतिक विज्ञान में अनुत्तीर्ण होने के बावजूद

मैँ विज्ञान पढ़ना चाहता था

अतीत में डूबने की हद तक

पिता को अतीत से प्यार था

पोथी-पत्रियों, दृष्टाँत, कथा-भागवत 

पूजा-पाठ की विधियाँ, अनुष्ठान आदि में कहीं

अटके हुए थे पिता के प्राण

वे चाहते थे पूरी तरह

पौरोहित्य में दीक्षित हो जाए उनका बेटा

बहुत ज़िद्दी और जल्दबाज़ थे पिता

उनकी ज़रूरतें ज़्यादा और आमदनी कम थी

घर एक भार की तरह था उनके कंधों पर

अपने चाहने और उसे कर पाने के बीच

उनके सामने एक बहुत चौंडी खाई थी

पिता की आकुलता और बेचैनी

कुछ कर पाने की विवशता

उन्हें दयनीय और विनयशील बना देती थी

वे पुरोहितगिरी को एक हुनर की तरह देखते

कहते—सीख लो! बुरा वक़्त आया तो

भूख से बचा लेगी यह विद्या

आर्थिक समझ रखने की उम्र नहीं थी मेरी

यह ज़रूर लगता कि इन बातों में गति नहीं है

इस प्रश्न की उपस्थिति से बड़ी चिढ़ होती

कि कोई विशिष्ट विद्या या ज्ञान का स्रोत

जाति या धर्म सापेक्ष कैसे हो सकता है?

भाषिक अक्षमता के बावजूद मेरे कुछ पूछने पर

वे चुप्पी साधकर उदास हो जाते

आँगन की छुई पुती कच्ची दीवार पर उन्होंने

नील से तुलसी की एक चौपाई लिख रखी थी—

प्रात काल उठि कै रघुनाथा

मातु पिता गुरु नावहीँ माथा

तुलसीदास पिता की हर परेशानी मैं

बहुत वैचारिक मदद करते थे

पर पिता की हार से कुछ पहले ही

मैँ ख़ुद उनके सामने हार जाता

कहता—चलो जो सिखाना हो सिखाओ!

वे घर पर ही पुरोहिताई सिखाने लगते

इधर पुरोहिताई सीखता मैँ

उधर भौतिक विज्ञान में फेल हो जाता।

स्रोत :
  • रचनाकार : हरिओम राजोरिया
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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