तलवारों का शोकगीत

talwaron ka shokagit

विहाग वैभव

विहाग वैभव

तलवारों का शोकगीत

विहाग वैभव

कलिंग की तलवारें

स्पार्टन तलवारों के गले लगकर

ख़ूब रोईं इक रोज़ फफक-फफक

रोईं तलवारें कि उन्होंने मृत्यु भेंट दिया

कितने ही शानदार जवान लड़कों के

रेशेदार चिकने गर्दनों पर नंगी दौड़कर

और उनकी प्रेमिकाएँ

बाजुओं पर बाँधे

वादों का काला कपड़ा

पूजती रह गईं अपना अपना प्रेम

चूमती रह गईं बेतहाशा

कटे गर्दन के होंठ

तलवारों ने याद किए अपने अपने पाप

भीतर तक भर गईं

मृत्यु-बोध से जन्मी जीवन पीड़ा से

तलवारों ने याद किया

कैसे उस वीर योद्धा के सीने से ख़ून

धुले हुए सिंदूर की तरह से बह निकला था छलक-छलक

और योद्धा की आँखों में दौड़ गई थी

कोई सात आठ साल की ख़ुश

बाँह फैलाए, दौड़ती पास आती हुई लड़की

कलिंग और स्पार्टन तलवारों ने

विनाश की यंत्रणा लिए

याद किया सिसकते हुए

यदि घृणा, बदले और लोभ से भरे हाथ

उन्हें हथेली पर जबरन उठाते तो

वे कभी भी अनिष्ट के लिए

उत्तरदायी रही होतीं

दोनों तलवारों ने सांत्वना के स्वर में

एक दूसरे को ढाँढस बँधाया—

तलवारें लोहे की होती हैं

तलवारें बोल नहीं सकतीं

तलवारें ख़ुद लड़ नहीं सकतीं।

स्रोत :
  • रचनाकार : विहाग वैभव
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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