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औरत

aurat

विसेंते उइदोब्रो

अन्य

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और अधिकविसेंते उइदोब्रो

    वह दो क़दम आगे बढ़ी

    और दो क़दम पीछे हटी

    पहले क़दम के अर्थ थे—'नमस्कार हे पुरुष, हे प्रियतम'

    दूसरे क़दम के अर्थ थे—'बहन जी, नमस्ते'

    और बाक़ी दूसरे क़दमों के अर्थ थे—कहो बाल-बच्चे

    कैसे हैं!

    आज तो धूप खिली है! आकाश स्वच्छ है!

    वह लपटों का ब्लाउज़ पहने थी

    उसकी आँखों में नीला समुद्र लहराता था

    उसकी एक जेब में एक सपना क़ैद था

    उसके दिमाग़ के बीचोबीच एक मुर्दा आदमी टँगा हुआ था

    जब वह समीप आती थी तो अपने अस्तित्व का

    सबसे प्यारा अंश दूर कहीं छोड़ आती थी

    जब वह बिदा होती थी तो दूर क्षितिज पर

    एक छाया उसकी प्रतीक्षा में खड़ी दीख पड़ती थी

    उसकी निगाहें घायल थीं और पहाड़ियों पर

    ख़ून में लथपथ पड़ी थीं।

    उसके विशाल वक्ष थे, वह अपनी उम्र की गोधूलि के गीत

    गाती थी

    वह एक कबूतर की छाँह में सोए हुए आसमान

    की तरह सुंदर थी!

    उसका चेहरा इस्पात का था

    और उसके होठों पर मौत की ध्वजाएँ अंकित थीं

    वह हँसती थी तो लगता था—मानो समुद्र हँस रहा हो

    समुद्र—जिसके पेट में अंगारे हैं, जिनसे वह तिलमिला उठा है

    समुद्र—जिसमें चाँद अपने को डूबते देखता है

    समुद्र—जो अपने किनारों को चला गया है

    अनंत काल के शून्य में डूबता हुआ समुद्र!

    जब सितारे हमारे सिर पर गुनगुनाते हैं

    और उत्तरी हवाएँ आँखें खोलती हैं

    उसकी हड्डियों का क्षितिज उसे और सुंदर बना देता था

    उसका जलता हुआ ब्लाउज़, उसकी थके पौधे-सी आँखें

    जैसे कबूतरों पर सवारी करता हुआ नीला आकाश

    स्रोत :
    • पुस्तक : देशान्तर (पृष्ठ 186)
    • संपादक : धर्मवीर भारती
    • रचनाकार : विसेंते उइदोब्रो
    • प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ, काशी
    • संस्करण : 1960

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