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जब क्षितिज की तीख़ी धार

jab kshitij ki tikhi dhaar

डाग हामरशुल्ड

अन्य

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डाग हामरशुल्ड

जब क्षितिज की तीख़ी धार

डाग हामरशुल्ड

और अधिकडाग हामरशुल्ड

    जब क्षितिज की तीख़ी धार ने आकाश को चीरा था

    एक ज़ख़्म हुआ था : उससे ख़ून बहते-बहते दिन की देह भर गई।

    उसकी ख़ाली शिराओं में अँधेरा पैठ गया है

    रात की सर्दी में लिपट कर लाश अकड़ गई है

    जल गए

    मुर्दे के ऊपर कुछ मौन नक्षत्र।

    दुपहर को गर्मी में तनाव बढ़ा

    उनकी संकल्प शक्ति डगमगा गई

    रात को चमकी बिजलियाँ

    जंगल तूफ़ान के जंगल में चीख़ा

    उन्होंने मानवता की पूरी क़ीमत अदा की

    ताकि दूसरे जीत के मज़े लूट सकें

    सुबह की धुँध

    चिड़ियों की चहक

    क्या ये रात के त्याग को याद करते हैं?

    स्रोत :
    • पुस्तक : दरवाज़े में कोई चाबी नहीं (पृष्ठ 233)
    • संपादक : वंशी माहेश्वरी
    • रचनाकार : डाग हामरशुल्ड
    • प्रकाशन : संभावना प्रकाशन
    • संस्करण : 2020

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