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पक्षी और तारे

pakshi aur tare

आलोकधन्वा

अन्य

अन्य

आलोकधन्वा

पक्षी और तारे

आलोकधन्वा

और अधिकआलोकधन्वा

    पक्षी जा रहे हैं और तारे रहे हैं

    कुछ ही मिनटों पहले

    मेरी घिसी हुई पैंट सूर्यास्त से धुल चुकी है

    देर तक मेरे सामने जो मैदान है

    वह ओझल होता रहा

    मेरे चलने से उसकी धूल उठती रही

    इतने नम बैंजनी दाने मेरी परछाईं में

    गिरते-बिखरते लगातार

    कि जैसे मुझे आना ही नहीं चाहिए

    इस ओर।

    स्रोत :
    • पुस्तक : दुनिया रोज़ बनती है (पृष्ठ 78)
    • रचनाकार : आलोकधन्वा
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
    • संस्करण : 2015

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