कन्याकुमारी में सूर्योदय-सूर्यास्त

kanyakumari mein suryoday suryast

अजीत रायज़ादा

अजीत रायज़ादा

कन्याकुमारी में सूर्योदय-सूर्यास्त

अजीत रायज़ादा

रोज़ क़रीब पाँच बजे

अँधेरे में आँखें मलते

उठता है सूरज

समुद्र के खारे पानी से

मुँह धोना पड़ता है उसे

बार-बार खुजलाने से

आँखें हो जाती हैं लाल

फिर भी उसे

बजानी होती है

अपनी ड्यूटी

बिना नागा।

कोई छुट्टी नहीं देती

प्रकृति उसको

क्योंकि उसका एवज़ीदार

दूसरा सूरज

नहीं तलाश सकी वह

आज तक

(माँ को तो

महरी के चले जाने पर

कभी मिल भी जाता है

दूसरा नौकर)।

इसीलिए बेचारे सूरज को ही

खटना पड़ता है प्रतिदिन

कभी-कभी

अपना सूरज होना

बहुत अखर जाता है

सूरज को।

थकान से पीला पड़ा

ज्वर में तपता

चल देता है वह

अपने सफ़र पर

कहीं घड़ी भर बैठकर

सुस्ताने की फ़ुर्सत

नहीं है उसको

आकाश के रेगिस्तान में

उगता नहीं कोई पेड़

जिसकी छाया तले

आँखें मूँदकर

कर ले तनिक विश्राम

दिन ढले ही लौट पाता है वह

थका-हारा

और लुढ़क जाता है

पानी के बिस्तर पर निढाल

लहूलुहान पाँवों को पसार।

क्या-क्या नहीं देखना पड़ता उसे

दिन भर में

पर कह भी नहीं पाता

वह किसी से

हृदय की वेदना

समय को

समय ही कहाँ जो सुने

सूरज की ज़ुबानी

और चाँद तो

उसके लौटने से पहले ही

घर से निकल पड़ता है

रास्ते में आते-जाते ही

हो पाता है

उससे दुआ-सलाम

किसके कंधे पर

सिर रखकर रोए

किससे कहे वह अपनी कहानी।

निकलते तो होंगे

पर ख़ुद अपनी गर्मी से

झुलसकर सूख जाते होंगे

इसीलिए किसी ने नहीं देखे

आज तक

सूरज के आँसू।

स्रोत :
  • पुस्तक : हाशिए पर आदमी (पृष्ठ 15)
  • रचनाकार : अजीत रायज़ादा
  • प्रकाशन : परिमल प्रकाशन
  • संस्करण : 1991

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