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सूखे गुलमोहर के तले

sukhe gulmohar ke tale

देवयानी भारद्वाज

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देवयानी भारद्वाज

सूखे गुलमोहर के तले

देवयानी भारद्वाज

और अधिकदेवयानी भारद्वाज

    चौके पर चढ़ कर चाय पकाती लड़की ने देखा

    उसकी गुड़िया का रिबन चाय की भाप में पिघल रहा है

    बर्तनों को माँजते हुए देखा उसने

    उसकी किताब में लिखी इबारतें घिसती जा रही हैं

    चौक बुहारते हुए अक्सर उसके पाँवों में

    चुभ जाया करती हैं सपनों की किरचें

    किरचों के चुभने से बहते लहू पर

    गुड़िया का रिबन बाँध लेती है वह अक्सर

    इबारतों को आँगन पर उकेरती और

    पोंछ देती है ख़ुद ही रोज़ उन्हें

    सपनों को कभी जूड़े में लपेटना

    और कभी साड़ी के पल्लू में बाँध लेना

    साध लिया है उसने

    साइकिल के पैडल मारते हुए

    रोज़ नाप लेती है इरादों का कोई एक फ़ासला

    बिस्तर लगाते हुए लेती है थाह अक्सर

    चादर की लंबाई की

    देखती है अपने पैरों का पसार और

    समेट कर रखती जाती है चादर को

    सपनों का राजकुमार नहीं है वह जो

    उसके घर के बाहर साइकिल पर लगाता है चक्कर

    उसके स्वप्न में घर के चारों तरफ़ दरवाज़े हैं

    जिनमें धूप की आवाजाही है

    अमलतास के बिछौने पर गुलमोहर झरते हैं वहाँ

    जागती है वह जून के निर्जन में

    सूखे गुलमोहर के तले।

    स्रोत :
    • रचनाकार : देवयानी भारद्वाज
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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