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सुबह-सुबह उठ के

subah subah uth ke

अनुवाद : दिनकर सोनवलकर

बा. सी. मर्ढेकर

अन्य

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बा. सी. मर्ढेकर

सुबह-सुबह उठ के

बा. सी. मर्ढेकर

और अधिकबा. सी. मर्ढेकर

    सुबह-सुबह उठ के, पीना चाय औ’ काफ़ी;

    और तुरंत पकड़ना विद्युत की ट्रेन।

    दाँतों में तिनका धारे, कहना झुक कर ‘हूज़ूर’

    फिर दुपहर का खाना, बस यही सार्थकता।

    शाम होने पर, भले लगी हो ज़ोरों की भूख,

    फिर भी बाल-बच्चों पर, होना नहीं नाराज़।

    नींद की खोपड़ी में, चिंताओं के बिल,

    सब मिट्टी हो गया, होना ही था।

    किसी के पैरों का कुछ भी होवे प्रभाव,

    अपने राम बैठे-बैठे, फूँकते हैं बीड़ी।

    जहाँ धुआँ उठता है, वहाँ आग जलती है,

    हम हैं जमदग्नि, प्रेत के रूप-सदृश्य।

    स्रोत :
    • पुस्तक : प्रतिनिधि संकलन कविता मराठी (पृष्ठ 143)
    • रचनाकार : बा. सी. मर्ढेकर
    • प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन
    • संस्करण : 1965

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