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पत्थर

patthar

अनुवाद : सिद्धनाथ प्रसाद

लनचेनबा मीतै

अन्य

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और अधिकलनचेनबा मीतै

    पत्थर

    पत्थर ही तो है

    ढोने में जानलेवा पत्थर

    चौड़ा सा पत्थर

    बड़ा सा पत्थर

    इस पत्थर के नीचे दबा दी गई है एक उन्मुक्त आत्मा। जीते-जी लोगों को दिखा शक्ति-सामर्थ्य। आई बारिश। चमकी धूप। बीते मौसम एक के बाद एक। बदलते गए साल। बदलती गई पीढ़ियाँ। समय की पर्तों में दफ़्न। बस, यह पत्थर पहले की तरह, वैसे ही, अपरिवर्तित।

    पत्थर

    पत्थर ही तो है

    ढोने में जानलेवा पत्थर

    चौड़ा सा पत्थर

    बड़ा सा पत्थर

    आज ही क्यों! बहुत पहले से। अनेक बार। हर स्याह रात को आए थे। बहुत से लोग। ख़ुद अपने ही सिर पर लगातार बरसाते तेज़ खारे आँसू। टकराए थे इस बड़े से कठोर पत्थर से बार-बार अपने ललाट। चारों ओर से घेर। आकर रोए थे, हृदय की चौड़ी दरार में आत्मा के धँस जाने तक—

    पत्थर :

    फट जाओ तुम पत्थर

    हो जाओ खंड-खंड

    नहीं दबाई गई थी वह प्राणवन्त आत्मा तुम्हारे नीचे

    दबाए गए थे हम ही

    ज़ुबान खोल सकने वाले हमारे हृदय;

    हे क्रूर पत्थर

    फट जाओ तुम

    बिखर जाओ असंख्य टुकड़ों में।

    स्रोत :
    • पुस्तक : तुझे नहीं खेया नाव (पृष्ठ 1)
    • संपादक : देवराज
    • रचनाकार : लनचेनबा मीतै
    • प्रकाशन : हिंदी लेखक मंच, मणिपुर
    • संस्करण : 2000

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