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भिखारी और पगला

bhikhari aur pagla

चाङ् ह्यान जाङ्

अन्य

अन्य

चाङ् ह्यान जाङ्

भिखारी और पगला

चाङ् ह्यान जाङ्

और अधिकचाङ् ह्यान जाङ्

    (हान शान के प्रति)

    जानता हूँ मैं भी उस सत्य की गहराई, जो

    तुममें साकार है;

    किंतु मेरी दृष्टि मुड़ जाती है दूसरी तरफ़

    क्योंकि तुम, जो बाहर और भीतर एक हो—तुम्हारी अपेक्षा

    यह मैं, जो कि भीतर और बाहर, अलग-अलग हैं,

    ख़ुद को ज़्यादा प्यार करता हूँ।

    किंतु तुम और मैं एक थे सूक्ष्म देह के रूपक में

    और तुम्हारे होने के निगूढ़ अभिप्राय को

    स्पष्ट करने के उन्माद में

    दुनिया को एक शराबी के पैमाने से देखते हुए

    और अपने नशे की हालत में 'संबोधि' प्राप्त करते हुए

    अब मैं तुम्हें अलग-अलग नहीं कर सकता; नहीं कह सकता

    इनमें कौन भिखारी है, कौन पगला।

    (भिखमंगापन या पागलपन, हान शान अथवा फ़्रांसिस्को

    अथवा इन पुरुषों की कोई फ़ालतू परछाईं,

    यही तो हैं वे रंध्र, जिनसे

    धरती साँस लेती है।)

    स्रोत :
    • पुस्तक : पुनर्वसु (पृष्ठ 359)
    • संपादक : अशोक वाजपेयी
    • रचनाकार : चाङ् ह्यान जाङ्
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली
    • संस्करण : 1989

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