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अपनी गति करो परिपूर्ण

apni gati karo paripurn

श्री अरविंद

अन्य

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श्री अरविंद

अपनी गति करो परिपूर्ण

श्री अरविंद

और अधिकश्री अरविंद

     

    मेरे भीतर अपनी गति करो परिपूर्ण, 
    हे अधिनायक मन 
    मस्तिष्क की धूसरता, विद्युत का दीप्त स्फुरण, 
    प्रतिभाशाली और विवेकशून्य, 
    इन्हें तुम करते संयुक्त, संरचित करने के लिए संसार, 
    स्वर्णिम नामावली में लिखते हुए विचार 
    नीललोहित-रेखामय।

    अपने लेखन के लिए बनाया तुमने मस्तिष्क को फलक, 
    दिव्य अधिनायक! 
    प्रशांति से तुम लिखते हो या अपनी भव्यता से परिपूर्ण 
    जैसे हो मदिरा की चमक से अरुण, 
    तब हँसकर तुम नामावली का करते अपमार्जन, 
    ले आते दूसरी, उन तरंगों के सदृश जो करतीं लुंण्ठन
    और हो जातीं चित निमग्न।

    स्रोत :
    • पुस्तक : श्री अरविंद | चुनिंदा कविताएँ (पृष्ठ 115)
    • रचनाकार : श्री अरविंद
    • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत
    • संस्करण : 2020

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