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आमंत्रण

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श्री अरविंद

अन्य

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श्री अरविंद

आमंत्रण

श्री अरविंद

और अधिकश्री अरविंद

     

    (अलीपुर कारागार)

    अपने चारों ओर टकराते मौसम और झंझावात को लेकर 
    मैं बंजर भूमि की ओर कर रहा प्रस्थान और ऊपर पर्वत पर। 
    कौन आएगा मेरे साथ? कौन मेरे संग करेगा अध्यारोहण? 
    विषम सरिता को पैदल करेगा पार और हिम के बीच करेगा संचरण?

    तुम्हारे द्वारों और तुम्हारी दीवारों से संवृत्त 
    नगरों की संकीर्ण परिधि में नहीं है मेरा वास; 
    ईश्वर है मेरे ऊपर का आकाश, 
    मेरे सम्मुख है पवन और झंझावात का उत्पात।

    यहाँ अपने प्रदेशों में एकाकीपन से मैं करता मनोविनोद, 
    विपद् और दुर्भाग्य को बनाया है मैंने अपना सुहृद। 
    कौन रहेगा विशाल होकर? कौन जिएगा होकर स्वाधीन? 
    यहाँ पवन से परिमार्जित उच्चभूमियों पर करके आरोहण।

    मैं हूँ पर्वत और तूफ़ान का अधीश्वर, 
    मैं स्वातन्त्र्य और स्वाभिमान का हूँ चैत्यात्मन्। 
    जो मेरे साथ चले और मेरे राज्य का हो अंशधर 
    उसे होना चाहिए अटल और संकटों का ज्ञातिजन।

    स्रोत :
    • पुस्तक : श्री अरविंद | चुनिंदा कविताएँ (पृष्ठ 84)
    • रचनाकार : श्री अरविंद
    • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत
    • संस्करण : 2020

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