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विज्ञान-वेत्ता और गीतकार

vigyan vetta aur gitakar

बोरिस स्लुत्स्की

अन्य

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बोरिस स्लुत्स्की

विज्ञान-वेत्ता और गीतकार

बोरिस स्लुत्स्की

और अधिकबोरिस स्लुत्स्की

    विज्ञान-वेत्ता को जो आदर मिलता

    सच तो है यह

    वह गीतकार को नहीं मयस्सर होता

    इसमें मामूली रुचि की बात नहीं है

    यह तो एक नियम है जिसका पालन होता

    इसका अर्थ हुआ—कविता के दिवा-स्वप्न ने

    ईजादों के पथ से हमको हटा दिया

    इतने ज़्यादा भावुक थे ये छंद हमारे

    पैर रक़ाबों में पड़ने से चूक गए

    ऐसा पता चला है कि अपना पैगासस

    बस केवल दुलकी चलता है

    भूमि छोड़कर ऊपर कभी उड़ पाता है

    इसीलिए विज्ञान-वेत्ता अधिकारी होता आदर का

    जो गीतकार को नहीं मयस्सर होता

    यह सब कुछ इतना साफ़

    कि इस पर होना भी नाराज़ बेवकूफ़ी है सचमुच

    इसलिए ईर्ष्या के बजाए

    हम शांत और निष्पक्ष दृष्टि से इस पर सोचें—

    निराशा में छंदों के भाग किस तरह से उठते हैं

    और शाल महत्ता का कैसे लॉगरिथ्म पाता है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : एक सौ एक सोवियत कविताएँ (पृष्ठ 229)
    • रचनाकार : बोरिस स्लुत्स्की
    • प्रकाशन : नेशनल पब्लिशिंग हाउस, दिल्ली
    • संस्करण : 1975

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