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दर्दहीन गीत

dardhin geet

अनुवाद : केदार कानन

नरेंद्र

अन्य

अन्य

नरेंद्र

दर्दहीन गीत

नरेंद्र

और अधिकनरेंद्र

    टखनों और अँगूठों से उठने वाला दर्द

    मेरुदंड तक जाते-जाते

    समाचार-सा बढ़ जाता है और मस्तिष्क के कुंद

    तंतुओं में पहुँचकर

    अग्निपिंड में तब्दील हो जाता है, वह अग्निपिंड

    हिन्दुस्तान के किसी खेत-पथार में

    फूट सकता है

    कंपूचिया के नगरों में भड़क सकता है और

    चीन की सड़कों पर विस्फोट कर सकता है

    अभी जो तुम्हारे दिमाग़ में

    चोर-सा एक आदमी घुस गया

    वह फायर-ब्रिगेड में काम करता है।

    पर, दिमाग़ से लेकर दिमाग़ तक फैली आग को

    किसी सरकारी शासक से दबाया नहीं जा सकता

    तुम, अभी उन्हें

    जो भी चाहते हैं कर लेने दो

    आग से खेलने की बचकानी हविश ही

    एक दिन उनकी मौत का कारण बनेगी

    तब तक तुम—

    किसी भी हथियार को धारदार बना सकते हो

    और कोई भी गीत

    जिसमें दर्द को अनिवार्य नहीं माना गया हो

    गा सकते हो।

    स्रोत :
    • पुस्तक : मैथिली कविताएँ (पृष्ठ 49)
    • संपादक : ज्ञानरंजन, कमलाप्रसाद
    • रचनाकार : विभूति आनंद
    • प्रकाशन : पहल प्रकाशन

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