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ख़ाली प्लॉट में जीवन

khali plaot mein jivan

कुमार अम्बुज

अन्य

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कुमार अम्बुज

ख़ाली प्लॉट में जीवन

कुमार अम्बुज

और अधिककुमार अम्बुज

    मेरे घर के सामने ही है वह ख़ाली प्लॉट

    लोगों को जिसके पास से

    साँस रोककर गुज़रने का हो चुका है अभ्यास

    वहीं जम चुकी है कचरे की मोटी तह

    और अब वह सब इस वसुंधरा का हिस्सा है

    वह धरती जिस पर हो चुका है सूअरों का क़ब्ज़ा

    भटकते चौपायों के बीच लड़के खेलते हैं क्रिकेट

    वहीं बीच में रखी कचरा-पेटी में दिन भर गिरता है कूड़ा

    जिस पर लपके रहते हैं सूअर, कुत्ते और गाएँ

    और जिसके भीतर धँसी हुईं

    दो-तीन बच्चियाँ जैसे हमेशा से ही

    बिना लड़े-झगड़े

    चुपचाप बीनती हैं पॉलीथीन और प्लास्टिक

    अजीब-सी सुरम्यता है

    अजीब-सी गंदगी

    फिर दुपहर ढल चुकी होती है

    फैलने लगती है अन्यमनस्कता

    निढाल सूअर पसर जाते हैं अपने भौगोलिक साम्राज्य में

    उनके बच्चे गुच्छों में जमा हैं अलसाई हुई माँओं के ऊपर

    सामने किराने की दूकान का थुलथुल मालिक

    ताँबे की खुरचनी से दाँत खुरचता हुआ

    कचरा-पेटी की तरफ़ देख रहा है अप्रभावित

    शाम होने को है

    एकाएक आता है नगरपालिका का ट्रैक्टर

    और चल देता है हुक ट्राली फँसाकर

    ट्रैक्टर की आवाज़ से चौकन्ने हुए सूअर

    पसरे हुए ही देखते हैं कचरा-पेटी का जाना

    रात में जब मैं नींद के दूसरे तहख़ाने में

    दाख़िल हो रहा होता हूँ

    सुनाई देती है ट्रैक्टर की आवाज़

    और सूअरों की प्रसन्न ग़ुर्राहट।

    स्रोत :
    • पुस्तक : प्रतिनिधि कविताएँ (पृष्ठ 102)
    • रचनाकार : कुमार अम्बुज
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
    • संस्करण : 2014

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