ओकराप्रति, जनैत बुभैत रहैत अछि जे चुप
okraprati, janait bubhait rahait achhi je chup
रोशन जनकपुरी
Roshan Janakpuri
ओकराप्रति, जनैत बुभैत रहैत अछि जे चुप
okraprati, janait bubhait rahait achhi je chup
Roshan Janakpuri
रोशन जनकपुरी
और अधिकरोशन जनकपुरी
एकटा इजोत
अछि खेहारि रहल हमरा
आ हम
सहेजने अन्हारकेँ
अपस्याँत, लंक लागिकऽ
भागि रहल छी अन्नाधून।
सहेजनाइ अन्हारकेँ
नहि अछि इच्छा हमर, परंच
विवशता अछि।
आत्ममोह
भोगक आकर्षण
आ नीजित्वक आदत
कऽ देने अछि विवश हमरा
आ तैँ हम भागि रहल छी
आ भागि रहल छी
जे कतौ भेटि नहि जाय इजोत
आ जरि नहि जाय अन्हारक ओ खोल
नुकायल छी जाहिमे हम।
मुदा ई इजोत
छोड़ि नहि रहल अछि हमर संग।
रुपैयाबला बन्दुकसँ निकलल
भूखबला गोली खाकऽ
अर्रा कऽ खसैत लोकक संग
रहैछ ई इजोत
आ हम भागि कऽ जाइत छी जतऽ,
ई सार्वजनीन लोक,
दृश्य
उपस्थित रहैत अछि ओतऽ।
इजोत
छोड़ि नहि रहल अछि
हमर पछोर।
हम भागि रहल छी
चौक-चौराहा,
यत्र-तत्र
अन्हारक खोल
पकड़ने कसियाकऽ
विवश हम।
हमरा माफ करब
इजोतक नागरिक सभ
इजोत तँ अछि हमरो प्रिय
मुदा अन्हारमे जीयब विवशता अछि हमर।
हमरा पालबाक अछि
हमर नीजि बेटा
हमरा बनयबाक अछि
हमर नीजि महल
हमरा भोगबाक अछि
हमर नीजि सुख
हमर आदत हमर विवशता, आह!
कतेक विवश हम!
हमरा माफ करब मित्र,
हमरा माफ करब।
- पुस्तक : समय गीत (पृष्ठ 30)
- रचनाकार : रोशन जनकपुरी
- प्रकाशन : मैथिली विकास कोष, जनकपुर
- संस्करण : 2013
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