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श्यामल श्रृंगार

shyamal shrringar

अनुवाद : शंकर लाल पुरोहित

चौधरी अजय प्रधान

अन्य

अन्य

चौधरी अजय प्रधान

श्यामल श्रृंगार

चौधरी अजय प्रधान

और अधिकचौधरी अजय प्रधान

    एक

    पहली भेंट में झेंप गई

    लजवंती की तरह

    झुके चेहरे से

    झर रही थी

    महक झरने की धार-सी।

    पहली भेंट में

    इतने चित्र

    कैसे बिखेर दिए

    मन के गहरे इलाक़े में

    सपने बो कर

    तैर गई अपने आँसुओं में।

    साँझ में

    तुम्हारे जूड़े से

    जब फिसल आता फूल कोई

    अंतरतम में

    रक्त की ऊष्म धार

    की-सी बह जाती।

    खाली पन्नों पर

    क्या बात लिखूँ,

    चंदन वन में घर,

    मलय पवन ढूँढ़ता

    चारों ओर

    तेरा अता-पता पाकर।

    होंठ कहते रहे

    कान सुनते रहे,

    आँखें भी बोल रही थीं जिन्हें

    हृदय ने सब सुना

    पहली बार जान पाया

    मन की व्यथा।

    दो

    धूप में नहीं

    शीत में जलने लगा मन

    तुम यदि नहीं

    तारों के तिमिर में

    जल रहा जीवन

    नहीं है सपन।

    तीन

    चाँदनी रात

    छू लेती

    सारी छाती

    महक जाते फूल

    ज्योत्स्ना सुलग उठती

    मेरी देह में

    क्यों दहकती आग।

    स्रोत :
    • पुस्तक : बीसवीं सदी की ओड़िया कविता-यात्रा (पृष्ठ 309)
    • संपादक : शंकरलाल पुरोहित
    • रचनाकार : चौधरी अजय प्रधान
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2009

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