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शून्य की उपलब्धि

shunya ki uplabdhi

अमर ज्योति

अन्य

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अमर ज्योति

शून्य की उपलब्धि

अमर ज्योति

और अधिकअमर ज्योति

    मैं में से मैं

    निकाल लिया

    बाक़ी रहा शून्य

    शून्य बहुत बड़ा है और बहुत छोटा

    जब भटकता है मरुस्थल में

    रेत का कण होकर

    नाचता गर्म हवा के साथ

    काले जंगल में से निकल, रोशनी की किरण

    ज़मीन पर छोटा-सा

    बनाती दायरा

    भोर में चिड़िया चहकती

    और गीत गाती चहचहाती शून्य के साथ

    गिद्दे में नाचती।

    रोशनी का यह दरिया

    लटका होता शून्य में

    सूरज, चाँद और लाखों-करोड़ों

    ब्रह्मांड बनकर

    इसकी थाह नहीं लगती।

    यह तो विस्तृत

    लेकिन जब बनता यह

    तिजोरी का श्रृंगार, धन का पहरेदार

    सृजित होता, शून्य का अस्तित्व

    देखा जाता, किसके लिए कितना

    कब और कहाँ से होगा आरंभ

    इसका सफ़र

    कब यह बन जाता बड़ा, विस्तार

    जल-सा

    घूमता गोल दायरे में शून्य

    मनुष्य घूम रहा इसके पीछे

    बन जाता मैं गोल घूमता इंसान

    मैं में से मैं

    निकल गया तो कम होने पर

    बचा ही क्या...? क्या बचा बाक़ी...?

    स्रोत :
    • पुस्तक : बीसवीं सदी का पंजाबी काव्य (पृष्ठ 362)
    • संपादक : सुतिंदर सिंह नूर
    • रचनाकार : कवि के साथ अनुवादक फूलचंद मानव, योगेश्वर कौर
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2014

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