Font by Mehr Nastaliq Web

शुक्र है कि तुम हो

shukr hai ki tum ho

खेमकरण ‘सोमन’

अन्य

अन्य

खेमकरण ‘सोमन’

शुक्र है कि तुम हो

खेमकरण ‘सोमन’

और अधिकखेमकरण ‘सोमन’

    शुक्र है कि किसी के अहित में उठ जाएँ

    ऐसे हाथ तुम्हारे पास नहीं

    या ऐसा धर्म भी नहीं जो

    बना दे तुम्हें अंधा

    फिर तुम चिल्लाते-पगलाते हुए

    जला दो बस-ट्रक, दुकानें

    पेट्रोल पंप और जीवित लोगों को

    शुक्र है कि तुम रहते हो ऐसे शहर में

    जहाँ हिंदू-मुस्लिम के नाम पर तेरा-मेरा नहीं होता

    या नहीं है किसी के लिए मन में कोई अँधेरा

    ऐसी है वहाँ की शिक्षा-दीक्षा

    धूप, हवा, पानी

    और रंग

    शुक्र है कि तुम

    भाषा और भाषाई विविधता भी समझते हो

    इतना कि किसी गाय, भैंस, कुत्ते, बिल्ली

    या चिड़िया को भी चोट लग जाए

    तब तुम्हें लगता है कि

    लग गई है तुम्हीं को गहरी चोट

    शुक्र है कि अन्न-धन्न की कीमत जानते हो

    जानते हो बच्चों का सरल मन भी

    इसलिए कभी किसी का अन्न-धन्न छीना

    ही छीना किसी बच्चे का मन भी

    शुक्र है कि सूरज के साथ ही उठ जाते हो तुम

    सर्दी में ठिठुर रहे लोगों को धूप के वस्त्र पहनाने

    और गरमाहट फैलाने के लिए

    शुक्र है कि तुम हो तो तुम

    थाम लेते हो उदास हाथों को

    उनकी उदासी दूर कर

    निरंतर संघर्ष का रास्ता चुनने के लिए

    शुक्र है कि तुम हो तो

    शुक्रिया कहने का आत्मिक भाव भी

    नहीं हुआ है ख़त्म अभी।

    स्रोत :
    • रचनाकार : खेमकरण ‘सोमन’
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

    संबंधित विषय

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

    रजिस्टर कीजिए