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शताब्दी का शेष शरद

shatabdi ka shesh sharad

अनुवाद : बीना क्षत्रिय

मनप्रसाद सुब्बा

अन्य

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मनप्रसाद सुब्बा

शताब्दी का शेष शरद

मनप्रसाद सुब्बा

और अधिकमनप्रसाद सुब्बा

    इस शताब्दी के अंत में मेरे शरद का

    किसी संतानहीन दम्पति का

    गर्भपात हुए जैसा गर्भपात हुआ।

    एक लंबी वर्षा से संघर्ष के पश्चात्

    मेरी लंबी प्रतीक्षा का शरद

    घर को ही आहाल कर चू पड़ा।

    गेंदे के सपनों के साथ खिलने वाला प्रिय शरद

    अंडे के भीतर ही मरे बच्चे जैसा

    घोंसले को जैसे दुर्गंधमय करने को सड़ गया।

    ऐसा हुआ कि इस बेमौसम की झड़ी में

    शरद सोच रहा ये पहाड़ का सिर

    भयंकर भू-स्खलन से झुक गया।

    और शरद के बिना शरद में मेरा सपना

    मरे बछड़े वाली गाय जैसे

    चले ही गए दुहते।

    (आहाल : वर्षा का पानी छत की फाँक से चूकर घर में फैल जाना।)

    स्रोत :
    • पुस्तक : ऋतु कैनवास पर रेखाएँ (पृष्ठ 68)
    • रचनाकार : मनप्रसाद सुब्बा
    • प्रकाशन : नीरज बुक सेंटर
    • संस्करण : 2013

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