Font by Mehr Nastaliq Web

शरद के भेष में कोई एक

sharad ke bhesh mein koi ek

अनुवाद : बीना क्षत्रिय

मनप्रसाद सुब्बा

अन्य

अन्य

मनप्रसाद सुब्बा

शरद के भेष में कोई एक

मनप्रसाद सुब्बा

अव्यवस्था का आकाश फैला है ऊपर।

किसी बहुरूपी के प्रभाव से

प्रभावित है इस वक़्त यह बस्ती।

वो बहुरूपी जब हँसता है

झुलसाने वाली धूप यहाँ चमकती है।

जब रोने का अभिनय करता है

खेतों में धान के फूल को झाड़ने वाली वर्षा होती है।

कभी वह

फसल पक रही है

विज्ञापन जैसी आशाएँ

गाँव-गाँव फैलाता है।

दशहरे में हँसने के स्वाँग के रंग को

दुःख की दीवारों पर पोतता जाता है।

कभी जाड़ा आता है कहकर

सबको सतर्क करने का नाटक करता है।

बातें तो हुई बहुत फिर भी

ये बस्ती हमेशा से अभाव में है।

क्योंकि ये आजकल

शरद के भेष में आए हुए कोई एक

मिथ्यावादी बहुरूपी के प्रभाव में है।

स्रोत :
  • पुस्तक : ऋतु कैनवास पर रेखाएँ (पृष्ठ 66)
  • रचनाकार : मनप्रसाद सुब्बा
  • प्रकाशन : नीरज बुक सेंटर
  • संस्करण : 2013

Additional information available

Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

OKAY

About this sher

Close

rare Unpublished content

This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

OKAY