Font by Mehr Nastaliq Web

शहर की नाव

shahr ki naav

लोकनाथ

अन्य

अन्य

लोकनाथ

शहर की नाव

लोकनाथ

और अधिकलोकनाथ

    शहर

    जो स्वप्नलोक थे

    मनोकामनाओं की पूर्ति के

    साक्षात् नए देवता

    कामधेनु और कल्पवृक्ष की तरह

    जहाँ का हर दिन होता

    इच्छा नौमी का दिन

    जो माँगो सो पाओ

    चुंबकीय आकर्षण से परिपूर्ण

    खिंचे चले आते थे

    गाँवों-क़स्बों के युवा

    महिला-पुरुष

    सब कुछ सहते

    उपनगरीय इलाक़ों की

    सड़ाँध मारती बस्तियों में

    अमानुषिक स्थितियों में

    अपना प्रेम निबाहते

    जीवन में वसंत के आगमन की

    लालसा लिए

    टिके रहते

    साल छह महीने में घर जाते

    फिर उल्टे पाँव लौट आते

    जब भी गाँव जाते

    थोड़ा-सा शहरीपन

    थोड़ी-सी संपन्नता

    गाँव में छोड़ आते

    गाँव से हर बार

    थोड़ा-सा गँवईपन

    देशी घी की ख़ुशबू

    अचार-मुरब्बा

    सेतुआ-ठेकुआ

    थोड़ी-सी सरलता

    थोड़ी-सी आत्मीयता

    शहर ले आते

    लॉक डाउन की घोषणा होते ही

    आख़िर ऐसा क्या हुआ कि

    वही शहर

    मजदूरों के लिए

    अजनबी हो गया

    सड़कों पर निकल पड़े

    मज़दूरों को रोकने-संभालने

    कोई नहीं आया

    क्या सचमुच

    शहर की नाव डूब रही थी?

    उसे पतवार की आवश्यकता

    नहीं रह गई थी?

    स्रोत :
    • पुस्तक : खुरदुरे पत्थर (पृष्ठ 101)
    • रचनाकार : लोकनाथ
    • प्रकाशन : बोधि प्रकाशन
    • संस्करण : 2024

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

    रजिस्टर कीजिए