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अब नहाने का वक़्त हुआ

ab nahane ka waqt hua

शैलजा पाठक

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शैलजा पाठक

अब नहाने का वक़्त हुआ

शैलजा पाठक

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    ये बदन पर गालियों का लेप है

    अब नहाने का वक़्त हुआ

    एक मर्द देर रात नशे में है

    वह खाने की थाली को लात मारता है

    वह औरत को देख करता है आँखें लाल

    वह बच्चों को बड़ी आवाज़ में सो जाने का आदेश देता है

    बच्चों के कमरे में शांत-सी हलचल है

    बच्चों की आँखें दीवार के पार देख रही हैं

    बच्चों के कान दीवार से झरती आवाज़ पर सिमट रहे हैं

    आदमी औरत की रात है

    बेमतलब के नशे वाले विवाद हैं

    औरत चीख़ नहीं रही—बच्चों की ख़ातिर

    आदमी दाग़ रहा उसके हाथ

    दाल में उँगली डुबा उसे पानी बता रहा

    ये हरामज़ादी ही रहेगी... बता रहा

    रात के काले पन्ने पर घोर सन्नाटा है

    यह अदालत के सोने का समय

    पुलिस के सोने का समय

    न्याय के सोने का समय है

    यह आदम के जाग की रात है

    सब हरामज़ादी औरत की छाती पर

    दाँत गड़ाए सो रहे हैं

    ये कभी नहीं खुलने वाली नींद है

    ये कभी नहीं ख़त्म होने वाली रात है

    किसी ने देह का पैसा चुकाया

    किसी ने हक़

    रात हरामज़ादी औरत है

    तुम उसी हरामज़ादी के जने...

    स्रोत :
    • रचनाकार : शैलजा पाठक
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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