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दुपहर का सूरज

duphar ka suraj

अनुवाद : पीयूष दईया

सी. पी. कवाफ़ी

अन्य

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सी. पी. कवाफ़ी

दुपहर का सूरज

सी. पी. कवाफ़ी

और अधिकसी. पी. कवाफ़ी

    यह कमरा, कितने अच्छे से मैं इसे जानता हूँ।

    अब वे इसे किराये पर चढ़ा रहे हैं, और बग़ल वाले

    को बतौर दफ़्तर। सारा मकान बन गया है

    दफ़्तर की एक इमारत दलालों, व्यापारियों, कंपनियों के लिए।

    यह कमरा, कितना देखा-भाला और अंतरंग है यह।

    वहाँ दरवाज़े के पास, दीवान था,

    उसके सामने तुर्की का एक क़ालीन।

    बग़ल में आला दो कलशों के साथ।

    दाएँ ओर—नहीं, उलटे—आईनादार एक अलमारी।

    बीच में मेज़ जहाँ उसने लिखा था

    और तीन बड़ी खपच्चियों वाली कुर्सियों।

    खिड़की के बग़ल में था बिछौना

    जहाँ हमने मज़े लिए हर बार।

    ये यहीं कहीं अब भी होनी चाहिए, वे पुरानी चीज़ें—

    खिड़की के बग़ल में या बिछौना,

    उसके आस-पास आधे तक फैला दुपहर का सूरज।

    एक दुपहर चार बजे हम थे बिछड़े केवल

    हफ़्ते भर को— और फिर वह—

    हफ़्ता हमेशा में बदल गया।

    स्रोत :
    • पुस्तक : प्यास से मरती एक नदी (पृष्ठ 80)
    • संपादक : वंशी माहेश्वरी
    • रचनाकार : सी. पी. कवाफ़ी
    • प्रकाशन : संभावना प्रकाशन
    • संस्करण : 2020

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