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सवालों के द्वार

savalon ke dvaar

कर्मदेव पाठक

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कर्मदेव पाठक

सवालों के द्वार

कर्मदेव पाठक

और अधिककर्मदेव पाठक

    अँधेरी रातों को बैठे-बैठे

    मैं सोचता हूँ

    कि रात में जुगनू चमकते क्यों हैं?

    आपस में श्वान भड़कते क्यों हैं?

    अँधेरा यदि बुरा है,

    तो क्यों शाँति संग खड़ा है?

    मैं देखता हूँ,

    मन में सवालों का द्वार

    पीटता हूँ, पीटता हूँ

    कि मैं जागूँ और देख सकूँ

    पक्ष अंधेरे का! वह पक्ष

    जो नहीं देख सकी बाक़ी दुनिया

    ये दोग़ली बड़बोली संपोली दुनिया।

    पीटता हूँ द्वार सवालों का

    कि अपने विचारों को रख सकूँ

    व्यक्त कर सकूँ

    अपने झिल-मिल आते-जाते

    विचारों को, संग्रहित कर दूँ

    नाड़ियों में बहते रक्त में

    इन अनगिनत शब्दों को

    इन बह रहे द्रवित विचारों को

    कि जब कोई संपोला डंसे मुझे

    तो उसके भीतर भी कोई द्वार

    पीटा जाए अनगिनत बार

    बार-बार

    कि जब तक उसका विष

    उसकी ख़ातिर अमृत ना हो जाए।

    मैं पीटता हूँ द्वार

    इसलिए कि अपने

    चित्त के स्लेट को भर सकूँ

    कर सकूँ,

    क्राँति स्वयं के अहँ से

    लड़ सकूँ,

    भौतिकता के ज़ुल्म से

    जुड़ सकूँ,

    तुम से, तुम्हारे स्पर्श से

    तुम्हारे होंठों के टकराने के कंपन से

    तुम्हारे हृदय स्पंदन से।

    मैं चकित-सा होता हूँ

    गहरी लंबी साँस भरता हूँ

    छोड़ता हूँ

    फिर सोचता हूँ

    कि दूषित मन कितना दूषित होता है?

    पाप क्या एक मकड़ा है

    जो मस्तिष्क पे जाले बुनता है?

    और यदि पाप मकड़ा है

    तो आत्मा कैसे पापी हुई?

    क्या इस आत्मा को

    सुलगाने से कुछ होगा?

    क्या मैं सुलगा डालूँ इस आत्मा को?

    नहीं-नहीं आत्मा तो अमर है—अंतर्मन बोल पड़ता है!

    और अचानक दीख पड़ता है

    मेरी पहाड़-सी छाती से उठता

    मेरी चमड़ी के विपरीत रंग का

    गाढ़ा श्वेत धुआँ

    घोर अंधेरे में उठता गाढ़ा धुआँ

    गोल गोल चक्कर खाकर

    एक बार उसी राह वापस आकर

    फिर आगे बढ़ता जाता है

    बरगद के मंडप तले कोई

    अपने अंतःकरण को सुलगाता है!

    धीरे-धीरे उठता धुआँ

    द्रुम के जालों को चीर

    चंद्रमा पे चद्दर जैसा घेर

    विलीन होता जाता है

    घोर अँधेरे की अंबर-खाईं में

    मानव के अस्तित्व की भाँति!

    स्रोत :
    • रचनाकार : कर्मदेव पाठक
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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