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संसद का गीत

sansad ka geet

गोरख पांडेय

अन्य

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गोरख पांडेय

संसद का गीत

गोरख पांडेय

और अधिकगोरख पांडेय

    सावधान! संसद है बहस चल रही है

    भीतर कुछ कुर्सियाँ मँगाओ

    बाहर जेलें नई बनाओ

    बाँधो लपटें झोंपड़ियों की

    महलों की रौनक़ें बचाओ

    खलबली मची है जंगल में

    आग जल रही है या भूख जल रही है

    जनता के नाम संदेशा है

    बिल्कुल आराम से मरो तुम

    पर अपने राज को चलाने

    के लिए हमें चुना करो तुम

    चुने हुए हाथों से ताक़त

    तेल मल रही है या ख़ून मल रही है

    बूटों से रौंदकर सभी को

    खेल रही नक़ली आज़ादी

    मातृभूमि बेच दी जिन्होंने

    नेता हो गए पहन खादी

    ख़ाली हो रही पतीली में

    देश गल रहा है या दाल गल रही है

    कुर्सी, क़ानून, तिज़ोरी का

    गठबंधन धूल में मिला दो

    यह सदर मुक़ाम है ठगों का

    लोगो! बमों से उड़ा दो

    देख लो प्रपंच-योजनाएँ

    अन्न फल रहा है या मौत फल रही हैं।

    स्रोत :
    • पुस्तक : समय का पहिया (पृष्ठ 82)
    • रचनाकार : गोरख पांडेय
    • प्रकाशन : संवाद प्रकाशन
    • संस्करण : 2004

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