Font by Mehr Nastaliq Web

सहारा अलगनी

sahara algani

असंगघोष

अन्य

अन्य

असंगघोष

सहारा अलगनी

असंगघोष

मेरी माँ

डाला करती थी

गुदड़ी-खतल्या और चद्दर

रोज़ सुबह समेट कर

घर की अलगनी पर

एक जोड़ी

गुदड़ी-खतल्या

पिता की दुकान में भी

एक ओर बँधी

अलगनी पर डला था

जिसे थके-माँदे पिता

देर रात उतार लिया करते थे

अपने बिस्तरे के लिए कभी-कभी

जब देनी होती

तैयार कर

चप्पल की अर्जेंट डिलिवरी

उसके ग्राहक को अलस्सुबह

पिता ग्राहक से मिले

रुपयों में से कुछ

अलगनी पर डली

गुदड़ी की तहत में रख

बचा लेते भविष्य के लिए

जब हाथ में काम नहीं होता

उस समय अलगनी ही आसरा थी

ख़ुद रस्सी के सहारे बँधी

सहारा थी बुरे वक़्त का

हमारे लिए।

स्रोत :
  • पुस्तक : दलित निर्वाचित कविताएँ (पृष्ठ 118)
  • संपादक : कँवल भारती
  • रचनाकार : असंगघोष
  • प्रकाशन : इतिहासबोध प्रकाशन
  • संस्करण : 2006

संबंधित विषय

Additional information available

Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

OKAY

About this sher

Close

rare Unpublished content

This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

OKAY