Font by Mehr Nastaliq Web

सड़क पर गिद्ध

sadak par giddh

चाहत अन्वी

अन्य

अन्य

चाहत अन्वी

सड़क पर गिद्ध

चाहत अन्वी

और अधिकचाहत अन्वी

    मेरे कंधे पर हर वक्त एक गिद्ध बैठा रहता है

    हमारी आँखें उस दिशा की ओर है

    जहाँ अभी-अभी दंगा हुआ है

    हमारी आँखें दिशाओं के साथ लगातार घूम रही हैं

    और मैं महसूस कर रही हूँ कि

    हिंद महासागर के समुंदर का पानी और ज़्यादा खारा हो गया है

    वह अब हर दंगे के बाद मेरे घर आता है

    मैं पूछती हूँ शहर का हाल

    तो कहता है सभी दंगे एक जैसे ही तो होते हैं

    बदलते हैं तो बस मरने वालों के नाम के साथ उनकी जाति

    उनका धर्म और उनके शहर का पता

    वह कहता है

    इस बार शहर में हुए दंगों में जो मरा उसे मैंने कभी नहीं देखा था

    उसकी माँ उसका नाम लेकर चीख़ रही थी

    उसके दोस्त बताते हैं कि वो उर्दू और हिंदी ज़ुबाँ में बातें करता था

    और ग़ज़लें लिखता था

    वो मरा दंगों में क्योंकि वह किसी एक रंग की तानाशाही के ख़िलाफ़ था

    मैं जब अपनी टूटी-फूटी ज़ुबाँ में मीर का कोई शेर पढ़ने लगती हूँ

    तो वो कहता है जो मरा दंगों में उसे भी दिल्ली पसंद थी और

    बेहद पसंद था मीर

    मैं उदास हो कर सड़क की ओर देखने लगती हूँ

    और अचानक मुझे याद आता है कि कितने दिन हुए

    खिड़कियों के पर्दे बदले हुए

    और कितने साल हुए शहर में नए मौसम को आए हुए।

    स्रोत :
    • रचनाकार : चाहत अन्वी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

    संबंधित विषय

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

    रजिस्टर कीजिए