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सच

sach

स्वाति शर्मा

अन्य

अन्य

और अधिकस्वाति शर्मा

    सत्य और सौंदर्य के अटूट रिश्ते में लगी है सेंध

    बह गया है स्वतंत्रता और आधिपत्य के बीच का पुल

    कर्तव्य और साधना के मानी बंद हैं बैंक लॉकर में

    आस अपनी चोटों से नहीं उभरेगी

    बहुत ऊँचाई से धकेला गया था उसे

    प्रेम और भक्ति अपना भेस बदल घूम रही हैं सड़कों पर

    प्रथाओं और गाथाओं की चक्रनेमी उतर गई है धुरी से

    अभिव्यक्ति को छोड़ दिया गया है हाशिए के सघन जंगल में

    ऐसे में अगर लिखना चाहते हो कवि

    तो सुंदर लिखो

    ऐसे में सच लिखो

    सच जो विकराल है

    सच जो भयावह है

    सच जो आपदा है

    सच जो भूखा, नंगा, आहत है

    सच जो यथार्थ के स्तंभ पर खड़ा है

    कवि चाहें कटाक्ष कहो

    या सच की खिल्ली उड़ाओ

    ऐसे में कवि ढाढ़स बँधाओ

    अबकी बार कवि दिल बहलाओ

    गुज़रने दो इस सच से मानव को

    निराशाग्रस्त हुए

    गुज़रने दो हौसला पस्त हुए

    गुज़रने दो मानव को

    इस त्रासदी से त्रस्त हुए

    स्रोत :
    • रचनाकार : स्वाति शर्मा
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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