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हेमंत कुकरेती

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हेमंत कुकरेती

मैं एक मनुष्य हूँ

शरीर के लिए मेरा जन्म नहीं हुआ

जिसका नष्ट होना तय है वह मेरी इच्छा क्योंकर होगा

हिमालय होना चाहता है कोई

कोई हवा को बाँधने का दावा करता है

मैं स्वयं एक दिशा हूँ

मैं उन सबको दिखता हूँ जो मुझे देखते हैं

जो घर की तरह खुले हैं

मैं उन्हें याद करता हूँ जहाँ तमाम रास्ते बंद हो जाते हैं

इस तरह मैं मुक्त होता हूँ

मेरी दीवारें नहीं हैं

जो अपने दरवाज़ों से दुनिया से जुड़े हैं

मैं उनकी खिड़की से धूप के साथ खुलता हूँ

जिनके पाससमय नहीं है जो कहीं जाने से डरते हैं कि

लौटेंगे कैसे इतनी दूर से

जो किसी से मिलने के फ़ायदे-नुक़सान सोचते हुए

अपनी गुफा के द्वार पर चट्टान की तरह जड़े रहते हैं

मैं उन्हें भी मनुष्य समझता हूँ

मेरी नज़र में वे उनसे अच्छे हैं

जो मनुष्य से मिलकर उसे मनुष्य से दूर करते हैं

मैं मनुष्य से मनुष्य की तरह मिलता हूँ

उस शरीर के साथ जो बाद में भी दूसरों में जीवित रहेगा

स्रोत :
  • पुस्तक : नया बस्ता (पृष्ठ 13)
  • रचनाकार : हेमंत कुकरेती
  • प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
  • संस्करण : 2002

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