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प्राणी की विशेष पहचान

prani ki vishesh pahchan

सर्गेई येसेनिन

अन्य

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सर्गेई येसेनिन

प्राणी की विशेष पहचान

सर्गेई येसेनिन

और अधिकसर्गेई येसेनिन

    जन्मकाल से ही होती है हर प्राणी की

    अपनी ही पहचान,

    अगर होता कवि तो शायद होता मैं कोई तस्कर या

    धोखेबाज़ महान।

    दुबला-पतला-नाटा मैं अपने बचपन में बन बैठा था

    बच्चों का सरदार,

    लहू-लुहान, नाक तुड़वाए, मैं लौटा करता था अपने

    घर अक्सर हर बार।

    अपने मुँह से लहू पोंछता बुद-बुद करता सहमी माँ को

    देता मैं आश्वासन,

    कुछ भी नहीं, ज़रा ठोकर खा लुढ़क गया था, भर जाएँगे

    कल ये घाव, चोट है अति साधारण।

    और आज जब शांत हुआ उन प्रबल दिनों का

    उन्मादी तूफ़ान,

    वही शक्ति बेचैन साहसिक फूँक गई इन

    कविताओं में प्राण।

    पर्वत खड़ा स्वर्ण शब्दों का पंक्ति-पंक्ति में,

    हैं प्रतिबिंब हज़ार,

    उस शरारती और लड़ाके लड़के के जो

    था साहसी अपार।

    मैं घमंड से पूर्ण साहस हूँ वैसे ही, फ़र्क़ यही है,

    आज नए छींटे उछालते करता हूँ अभियान,

    और अगर तब चोट किया करते थे वे सब मेरे मुँह पर

    अब मेरी आत्मा रहती है रिसती, लहू-लुहान।

    आज नहीं कहता मैं जाकर अपनी माँ से

    कहता हूँ अजनबी भीड़ से, अट्टहास करते इस जनगण से,

    कुछ भी नहीं ज़रा पत्थर से ठोकर खाकर लुढ़क गया था,

    हो जाएँगे कल ये बिल्कुल ठीक, घाव हैं साधारण-से।

    स्रोत :
    • पुस्तक : आधुनिक रूसी कविताएँ-1 (पृष्ठ 109)
    • संपादक : नामवर सिंह
    • रचनाकार : सर्गेई येसेनिन
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली
    • संस्करण : 1978

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