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ईंट ढोने वाला

int Dhone vala

वसिली काज़ीन

अन्य

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वसिली काज़ीन

ईंट ढोने वाला

वसिली काज़ीन

और अधिकवसिली काज़ीन

    संध्या को जब काम ख़तम कर अपने घर को आता हूँ

    श्रमकण से भीगे कपड़े को तन पर चिपका पाता हूँ,

    अंधकार में मेरे कपड़े, लेकिन, स्वर पा जाते हैं,

    लाल ईंट का लाल गीत वे कंठ खोलकर गाते हैं।

    गाते हैं, कैसे नीचे से ऊपर, उसके भी ऊपर

    मैं चढ़ता जाता हूँ, अपना लाल बोझ सिर पर धरकर,

    और पहुँचता चढ़ते-चढ़ते मैं सबसे ऊँची छत पर,

    जिसके ऊपर तना हुआ है नग्न, घना नीला अंबर।

    कैसे चारों ओर क्षितिज पर आँखें फिर घूमा करती,

    जहाँ हवा सिहरी कुहरे से है ठंडी आहैं भरती,

    जहाँ उषा भी दिखलाई देती है अपना भार लिए—

    लाल-लाल ईंटों का अपने मस्तक पर संसार लिए।

    संध्या को जब काम ख़तम कर अपने घर को आता हूँ

    श्रमकण से भीगे कपड़े को तन पर चिपका पाता हूँ,

    अंधकार में मेरे कपड़े, लेकिन, स्वर पा जाते हैं,

    लाल ईंट का लाल गीत वे कंठ खोलकर गाते हैं।

    स्रोत :
    • पुस्तक : चौंसठ रूसी कविताएँ (पृष्ठ 135)
    • रचनाकार : वसिली काज़ीन
    • प्रकाशन : राजपाल एंड संस
    • संस्करण : 1964

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