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रुक जा ओ बारिश रुक जा!

ruk ja o barish ruk ja!

प्रवासिनी महाकुड़

अन्य

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प्रवासिनी महाकुड़

रुक जा ओ बारिश रुक जा!

प्रवासिनी महाकुड़

और अधिकप्रवासिनी महाकुड़

    रुक जा बारिश रुक जा!

    मैंने बनाई है नाव

    फाड़ लाई हूँ दीदी की

    एक कॉपी से दो पन्ने

    टेलीफ़ोन के तार से

    सुन पड़ता है पंछियों का गीत

    रसोई घर से माँ की पुकार

    मैं नहीं जाऊँगी।

    आज तिरा दी है मैंने नाव

    बड़ी दीदी की ससुराल

    यहाँ से है दूर बहुत

    साथ में तो ले नहीं गई

    लिखा है क्या—

    आँखों के आँसू

    अब हो गए हैं सागर जल

    याद आती हूँ मैं ख़ूब

    नैया मेरी! दीदी से कहना

    उसके बिना यहाँ सब कुछ

    लगता है सूना-सूना

    सामने है गणेश पूजा

    परसाल उसने बनाई थी माला

    चाँदनी के फूल पत्तों की!

    सूरज दिखता है कभी

    कभी फिर छिप जाता है बादल

    छाया और उजाले का

    खेल तो चलता ही रहता है

    रुक जा बारिश रुक जा!

    कम होने दे थोड़ा पानी का

    ज़िदख़ोर ज़ोर

    तू नहीं जानती क्या अब मुझे

    दिखाई देता है सिर्फ़

    दीदी का

    देवी जैसा चेहरा?

    स्रोत :
    • पुस्तक : शब्द सेतु (दस भारतीय कवि) (पृष्ठ 48)
    • संपादक : गिरधर राठी
    • रचनाकार : कवयित्री के साथ दीप्ति प्रकाश एवं प्रभात त्रिपाठी
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 1994

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