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खँडहरों की छाँव

khanDaharon ki chhanw

मनीषा कुलश्रेष्ठ

मनीषा कुलश्रेष्ठ

खँडहरों की छाँव

मनीषा कुलश्रेष्ठ

मेरे अंतरंग

यह बस मैं या कि तुम

जान सकते हो

जो लोग खँडहर-खँडहर इतिहास की

छाँव में पल रहे होते हैं,

अजब रुमानियत उनमें रिस आती है...

ऐसी रूमानियत

वो धुँधलका

जिसमें ज़िंदगी की रेत भी

पिघलते सोने की नदी हो जाती है

उन्हें पता तक नहीं होता...

कैसी अनंतता में

जीने का एक यक़ीन लिए

वो बड़े हो रहे हैं

वो पाल रहे हैं

विषधरों से भरे आँगन में

कुछ ललमुनिया-स्वप्न

इतिहास पलट देने का

सूर्य-पुष्प को अलकपाश में

गूँथ लेने का

स्रोत :
  • रचनाकार : मनीषा कुलश्रेष्ठ
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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