Font by Mehr Nastaliq Web

चित्तौड़गढ़

chittauDgaDh

हेमंत शेष

अन्य

अन्य

हेमंत शेष

चित्तौड़गढ़

हेमंत शेष

और अधिकहेमंत शेष

    क़िले की छाया में पहुँचते पहुँचते

    सुनता हूँ हज़ारों चीख़ें आग के रंग से भी ऊँची

    हज़ारों-हज़ार घोड़े चिंघाड़ते

    ख़ून से सनी दिखती तलवारों की चमक

    तोपों के धमाके और बारूद की गंध

    लौह-कपाटों को तोड़ने के लिए उनसे सिर फोड़ते हाथी

    लड़ते-कटते-मरते-गिरते

    कबंध ही कबंध हैं यहाँ

    और उनसे बोलते-बतियाते हुए खंडहर

    चित्तौड़गढ़ दुर्ग के आख़िरी योद्धा के मुँह से

    निकला होगा आख़िरी शब्द

    ‘आज़ादी’

    जो हवाओं में चौतरफ़ गूँज रहा है

    खंडहरों मंदिरों स्तंभों से टकरा कर लहूलुहान

    बस एक शब्द ׃ बार-बार लगातार

    जो इस क़िले की सूरत में

    हर इतिहास और देशकाल में

    ग़ुलामी का सब से प्रबल और स्थायी प्रतिपक्ष है

    शब्द :

    नंद चतुर्वेदी की एक बेहतरीन कविता ‘किला’ की याद दिलाता हुआ!

    स्रोत :
    • रचनाकार : हेमंत शेष
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

    रजिस्टर कीजिए