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रोज़ सुबह नाक सुड़क टोह लिया करता हूँ

roz subah naak suDak toh liya karta hoon

अनुवाद : गिरधर राठी

डैनियल वाएसबोर्ट

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रोज़ सुबह नाक सुड़क टोह लिया करता हूँ

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    रोज़ सुबह नाक सड़क टोह लिया करता हूँ अपने चतुर्दिक,

    कि सब कुछ जहाँ का तहाँ है अभी भी।

    जैसे कि सामने के घर की खपरैल,

    गंध उस बिल्ली की, मरी जो दो दिन पहले;

    माँ की, जो मरी थी एक साल पहले।

    यह मेरा दाय है,

    हर बार थोड़ा-सा परिवर्तित,

    मनमौजी, अपनी चौहद्दी में, जैसा मैं।

    स्रोत :
    • पुस्तक : प्यास से मरती एक नदी (पृष्ठ 235)
    • संपादक : वंशी माहेश्वरी
    • रचनाकार : डैनियल वाएसबोर्ट
    • प्रकाशन : संभावना प्रकाशन
    • संस्करण : 2020

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