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रेत की स्मृतियाँ

ret ki smritiyan

प्राची

अन्य

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प्राची

रेत की स्मृतियाँ

प्राची

और अधिकप्राची

    नानी कहती है—

    सामने बहनी वाली खरखरा ने

    बहुत जीवन देखा है

    कैसे गाँव वालों ने

    बाढ़ में बहकर आए शेर को मारा

    सिर्फ़ भालों और कुदाल से

    भूखा-प्यासा भन्नाया शेर

    इन लोगों के सामने लाचार

    आख़िरी साँस तक लड़ा

    इसमें कुछ ज़ख़्मी हुए

    फिर उसे नाँद गाँव बाज़ार में

    पंद्रह सौ में बेच दिया

    उसके अगले साल जब सूखा पड़ा

    भरी दुपहर एक विधवा

    अपना बच्चा ले निकली

    मायके का रास्ता

    नदी के सहारे मापती

    पैदल-भूखी-प्यासी

    पाँच साल का बच्चा

    तपती रेत

    दोनों रोते

    और सिर चढ़ती लकलकाती धूप

    उन्हें चुप करवाती

    रेत-अंगार की नदिया

    और आसमान

    आग की चादर

    विधवा के अंदर से माँ मरी

    और तपती रेत में

    अधजले पाँवों ने नीयत बिगाड़ी

    बेटा ज़मीन पर लिटा

    वह उस पर खड़ी हो गई

    जा देख नदिया पार

    आज भी दोनों रेत में सोए हैं

    इतनी मृत्यु-कथा के बाद

    मैंने रेत की जीवन-स्मृति के बारे पूछा

    गाँव की दीवारें चटख़ उठीं

    मुझे नदी की ओर धकेलतीं

    एक बोरी रेत की तरफ़

    थोड़ा और जीवन जीने को

    नानी से छुटकारा पा

    किसी पुरुष से पूछने का जी करता है

    उन्हें कहाँ दफ़नाया?

    किस किनारे?

    कौन-सी जगह?

    कौन-सा ठौर?

    कितनी मिट्टी?

    कितना नमक?

    कितनी गहराई?

    रेत की स्मृतियाँ

    मुझ डूबते हुए को

    केवल मृत्यु-कथाएँ सुनाती है।

    स्रोत :
    • रचनाकार : प्राची
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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