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रन एक प्रन कठिन

ran ek pran kathin

पंकज सिंह

अन्य

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पंकज सिंह

रन एक प्रन कठिन

पंकज सिंह

और अधिकपंकज सिंह

     

    वहाँ धूसर सन्नाटे में भूख सिर्फ़ थी
    जिसे घेरे थीं रोज़ मरती हुई इच्छाएँ
    दम तोड़ने तक सिर्फ़ बर्दाश्त की एक काली परत थी
    जबरन जीभ, आँख और हाथों पर चढ़ी हुई

    मगर धीरे-धीरे इनकार के साथ उठ खड़ी हुई
    रौंदी जा रही पसलियों की आवाज़
    कि मिट्टी नहीं होते जाना है यों पुश्त-दर-पुश्त

    बहुत हो लिए
    बहुत
    रो लिए
    बहुत हो ली आन्हर असहायता
    समझने-समझाने को अब एक ही चीज़ है
    एक ही भाखा
    बल्लम बरछे लाठी कैंते की
    भाखा बारूद के बदले बारूद की...

    तब बंधक रह गईं
    महज़
    अपमान सनी यादें बँधुआ
    जले अतीत की भसम से कराहों से
    उठे बिजलियाँ भरे हाथ
    सूर्योदयों के साथ भोर भिनसारे
    संझा सँझवाती में तपती हथेलियों में
    अनेक दास हाथों में
    आए हथियार पहली बार
    पुलकित मुस्काईं आम लीची की गाछियाँ
    सिहक लिए पत्तों से
    तालियाँ बजाती
    गुर्राए और बेबस बिलबिलाए
    ज़मींदार मालिक मलिकार
    दौड़ो-दौड़ो
    पुलिस
    मलिटरी हाथी हौदा
    अमला फौदा
    घेरो-घेरो उमड़-घुमड़ो
    सारे करियाए बादल...

    मगर ऐसा था जागरण का
    अगिन असनान
    कि ढहती रहीं पाँते भाड़े के पुतलों की
    रस्म नई दीखी एक दँवनी की
    नए खलिहान हुए गाँवों के सिवान

    यों हुआ शुरू
    यों शुरू हुआ
    रन एक प्रन कठिन

    मुक्ति का

    गुदड़ी पर काल की शतदल सहस्रदल
    ख़ून के फूलों ने
    लिखनी शुरू की कथाएँ नई
    नए इतिहास की भोजपुर से
    ________________________
    1979, कॉमरेड जौहर की स्मृति को समर्पित

    स्रोत :
    • रचनाकार : पंकज सिंह
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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