Font by Mehr Nastaliq Web

सिर पर घड़ा उठाए वह

sir par ghaDa uthaye wo

अतुल कनक

अन्य

अन्य

अतुल कनक

सिर पर घड़ा उठाए वह

अतुल कनक

और अधिकअतुल कनक

    सिर पर घड़ा उठाए वह

    भगीरथ भले ही हो

    पर उनसे कम भी नहीं है उसकी तपस्या

    जो रोज़ उठकर मशक्कत करती है अकेली

    परिवार की प्यास बुझाने की ख़ातिर

    और माँगती भी नहीं

    गंगाजी को भूमि पर ले आने का श्रेय...

    ध्यान से देखो

    साक्षात् समंदर है

    ये घड़ा फ़क़त घड़ा भर नहीं है

    जमा है जिस पर उसके पसीने का क्षार

    इस घड़े में अगर पानी ही होता फ़क़त

    तो हमें कैसे मिलता

    अमृत को हलक़ में उतारने का सुख

    चुल्लू भरते ही / कौन नहीं जानता

    कि समंदर से ही प्राप्त होता है अमृत—

    सिर पर घड़ा उठाए वह

    शेषनाग भले ही हो

    पर कम नहीं है उसका महत्त्व शेषनाग से

    जैसे उसी ने उठा रखा हो बोझ

    सारी ज़िंदगी का / इस घड़े के स्वरूप में...

    मैं जब भी देखता हूँ

    उसकी ओर, सिर पर उठाए घड़ा इसी तरह,

    अपने-आप श्रद्धा से जुड़ जाते हैं मेरे हाथ

    कि मुझे तो उसी के अस्तित्व में दीख पड़ते हैं

    तैंतीस करोड़ देवी-देवता।

    स्रोत :
    • पुस्तक : आधुनिक भारतीय कविता संचयन राजस्थानी (1950-2010) (पृष्ठ 136)
    • रचनाकार : अतुल कनक
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2012

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

    रजिस्टर कीजिए