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हम अपमानित

hum apmanit

अनुवाद : राजेंद्र देथा

पारस अरोड़ा

अन्य

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पारस अरोड़ा

हम अपमानित

पारस अरोड़ा

और अधिकपारस अरोड़ा

    बारम्बार अपमानित हुआ हूँ मैं

    अपमानित हुए हो आप

    मेरे साथियो!

    हम में से जब कभी कोई

    सड़क पर आकर गाता है

    हम लोगों से गाने का

    ‘हुक्मनामा’ माँगा जाता है।

    हमने जब कभी अँधेरे में

    मंत्रणा करते हुए चेहरों पर

    टॉर्च की रोशनी डाली,

    छिपे हुए हाथों की निशानी बनी टॉर्चें।

    हमने जब कभी किसी मंच से

    अपनी वाणी को ताना

    हम अपराधी घोषित हुए।

    हमारे ऊपर फ़क़त शब्द ही नहीं

    फेंकी गई पूरी किताबें

    लगाए गए हमारे शब्दों पर शब्द

    जिससे उनको कोई सुने नहीं

    कोई उनको पढ़े नहीं, गुने नहीं।

    जब कभी उनको किसी ने सुन लिया

    पढ़ लिया या गुन लिया समझो तभी

    बदल जाएँगे नियम सभी,

    चेहरों पर चढ़े हुए सभी मुखावरण

    टूट जाएँगे, दरार पड़ जाएगी,

    अंदर का संसार धारण करता रूप

    बाहर निकल आएगा।

    स्रोत :
    • पुस्तक : सदानीरा
    • संपादक : अविनाश मिश्र
    • रचनाकार : पारस अरोड़ा
    • प्रकाशन : सदानीरा पत्रिका

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