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रहमान कहता था

rahman kahta tha

अनुवाद : तुषार धवल

दिलीप पुरुषोत्तम चित्रे

अन्य

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और अधिकदिलीप पुरुषोत्तम चित्रे

    रहमान कहता था

    वहाँ पठार है

    पठार पर चरागाह

    चरागाहों में जाते हैं

    खानाबदोश क़बीले

    पालतू जानवर

    चरागाहों को पार करते हैं

    मौसम के मुताबिक वे

    नदियों घाटियों में उतरते हैं

    मौसम के मुताबिक वे

    पहाड़ों के पार चले जाते हैं

    नक्षत्रों के अनुसार

    मापे गये मार्ग पर

    मौसम के मुताबिक

    तंबू डालते हैं

    इस यायावरी में ही

    वे करते हैं इश्क़ मुहब्बत

    झगड़े और क़त्ल

    शादियाँ, बच्चों की पैदाइश

    बुढ़ापा,

    मरना जीना सब

    अल्ला की कृपा से

    मैं यायावरों का ही वंशज हूँ

    आजकल बसा हुआ

    इस एक शहर के

    एक मुहल्ले में

    कहीं भी आना जाना नहीं है

    पाँचों वक़्त नमाज़

    और बाक़ी वक़्त में

    तुम्हारा मेरा

    जीना मरना

    सब अल्ला की कृपा से

    यहाँ कुछ भी

    मौसम के मुताबिक नहीं है

    यहाँ कोई भी रास्ता नहीं है

    सितारों का बताया हुआ

    यहाँ इन आलीशान मकानों के

    अँधेरे कमरों में

    घुटता है एकांत का अर्थ

    एकांत में

    यहाँ, एक बग़ीचे की जगह

    इतर की शीशी है

    कतरी हुई ख़ुश्बू

    काल्पनिक गुलाब

    मायावी नर्गिस

    सांकेतिक यास्मीन

    रहमान ने कहा

    अल्ला मियाँ ने

    हमें नाक नहीं दी होती तो

    कौन-सी ख़ुश्बू हमें बता पाती

    हमारे पूर्वजों के

    आने का रास्ता

    और यह लिपि?

    रहमान ने कहा दोस्त

    अस्ताचल की तरफ़ मुँह करके

    घुटने टेक कर

    झुक जाओ उसके सामने

    कौन जाने कल सुबह का सूरज

    शायद तुम्हारा आख़िरी ही हो

    दिन के वक़्त

    रेगिस्तान जलत तपता है

    फिर भी उसमें

    मृगमरीचिका चमकती है

    कितने भेद छुपाये होता है

    किस तरह तारों से भरा

    और कैसे उगाता है आधा चाँद

    ‘अलिफ’ लिए अपने ऊपर

    जो मील दर मील चले जाते हैं अकेले यहाँ से

    लिए जाते हैं ह्दय के एक हिस्से में दिन

    और दूसरे में रात

    सिर्फ़ सूफ़ी ही देखते हैं

    रेगिस्तान में

    सूरज को डूबते हुए

    तारों के उगने से पहले

    रहस्मयहीनता की

    दहलीज़ पर

    रहमान कहता था

    दोस्त, हम जो एक साथ देखते हैं

    सूरज का ढलना इस रेगिस्तान में

    उदासी पर एकाग्र हुए

    गवाह हैं।

    स्रोत :
    • पुस्तक : मैजिक मुहल्ला खंड दो (पृष्ठ 37)
    • रचनाकार : दिलीप पुरुषोत्तम चित्रे
    • प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
    • संस्करण : 2019

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