राधा कहाँ है-2

radha kahan hai 2

सुगतकुमारी

सुगतकुमारी

राधा कहाँ है-2

सुगतकुमारी

रात में, कुछ ही समय मिला तो भी

क्षणभर कान्हा दौड़ के आया

प्रतिदिन सी पुष्पित थी लताएँ

सुगंध वर्षित चाँदनी में स्नात

बिना पुष्प आंजे बिना सज-धज के

बिना आँसू बहाए खड़ी थी निश्चल

परिचित संकेत स्थान; एकांत पथिक

मात्र चकवा ही रोता था बीच-बीच में

बहुत देर बिना उत्तर-श्रवण!

पलभर कान्हा दौड़ आया,

श्याम वक्षःस्थल पर सिसककर आश्लेषित

एक चुंबन मात्र ले के, “मम राधिके,

बिछुड़ता हूँ” मात्र कह के

छिप गया अंधकार में, अदृश्य चाँदनी,

सब जल मिटा गगन में मेघगर्जन से!

कहा बिछुड़ता हूँ मैं, पर

“लौटूँगा” मेरे कान्हा ने कहा नहीं

यह भी नहीं कहा वियोग सहो

थोड़ी देर, आऊँगा, रोना मत

जाने बिना पुकारते हो तू

रे कोकिल ‘आएगा नहीं’, ‘आएगा नहीं’ कभी...

हे राधारानी, कहाँ है तू?

पथ के रथ-गमन चिह्न देख-देख के

दौड़-दौड़ के जाने वाली

कोई दुःखी नारी को

किसी ने देख अगले दिन

शीघ्र खड़ी चिंतित, पहुँचना मत साथ, कह के

उसे देखा तो थी धीरे निकलती हुई किसी मार्ग से

जपती थी ‘हरि’ ‘हरि’

अश्रुधारा बहती थी

अस्त-व्यस्त केश मलिन वस्त्र

वदन झुका के जा रही थी कहीं

श्रीराधा, गोकुल की रानी, प्रेम से

चुराने वाली माधव का मन

वही है क्या रोती-कलपती अकेली भटकती

यह निरालंब सम्भ्रान्त, अनाथ नारी!

विरहिणी दुःखी सहेगी नहीं यह

महाव्यथा, नाथ कठोर है तू क्या?

अधरों पर अधर दबा के मंत्रित

मधुर वाणी है असत्य क्या?

उसने जिसे दिया अनुराग, ग्वाला नहीं वह

राजकुलजात, हमारे ईश

कसेगी नहीं पीताम्बराञ्चल और

खुरदरा वसनाग्र उस बेचारी का।

फिर भी, भूल गए क्या? बीतते समय

मंगल-प्रहर रात के

प्रभात में लज्जायुक्त वदन

झुक के पाटल सा संकुचित

जा रही थी कालिन्दी तीर

स्नान करने राधा अकेली

क्षण भर देख सखियाँ शीघ्र

हँस पड़तीं, दूर भागने का कारण क्या?

वह झन-झनी हँसी गूँजती सर्वत्र

क्या कारण इसके मुख छिपाने का?

यह समझे बिना रुक जाती, तिरछी

आँखों से दिखाती है सखी

अनजाने पहने है राधा छोटा सा पीतांबर!

गया तो था पहन के नीलांचल

गाय चराने आज घनश्याम!

स्रोत :
  • पुस्तक : राधा कहाँ है (पृष्ठ 43)
  • रचनाकार : सुगतकुमारी
  • प्रकाशन : केरल हिंदी साहित्य मंडल प्रकाशन
  • संस्करण : 1996
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

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‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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