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प्यार करता हुआ कोई एक पूरी पृथ्वी होता है

pyar karta hua koi ek puri prithwi hota hai

मनोज कुमार पांडेय

अन्य

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मनोज कुमार पांडेय

प्यार करता हुआ कोई एक पूरी पृथ्वी होता है

मनोज कुमार पांडेय

भीतर ही भीतर जलती रहती है आग

जिसे भीतर का ही पानी धधकाता रहता है पल पल

हवाएँ चलती हैं तूफ़ान से भी तेज़

जिन्हें भीतर का ही पहाड़ रोकता है

कहीं बह रही होती हैं गर्म धाराएँ

उसी पल एक हिस्सा बदल रहा होता है बर्फ़ में

कहीं तैर रही होती है रौशनी

कहीं घिर रहा होता है अँधेरा घुप्प

भीतर बसते हैं अच्छे बुरे लोग

उनके भीतर बसती हैं अलग-अलग दुनिया

प्यार करता हुआ कोई एक पूरी पृथ्वी होता है

घूमती हुई पृथ्वी के ऊपर सब कुछ चल रहा होता है जस का तस

स्रोत :
  • रचनाकार : मनोज कुमार पांडेय
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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