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पुरखे करते थे आह्वान

purkhe karte the ahvan

अनुवाद : गिरधर राठी

फ़र्नांदो पेसोआ

अन्य

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फ़र्नांदो पेसोआ

पुरखे करते थे आह्वान

फ़र्नांदो पेसोआ

और अधिकफ़र्नांदो पेसोआ

    पुरखे किया करते थे आह्वान देवों का

    हम अपने आप को आह्वान करते हैं

    पता नहीं देवता प्रकटे थे या नहीं—

    साधक और साध्य में कुछ तो होगा लगाव—

    किंतु मुझे पता है हम प्रकट नहीं होते

    कितनी ही बार झाँक देखा है कुएँ में

    कुआँ मैं स्वयं हूँ—

    और मिनमिनाया हूँ 'आह!' मगर कोई

    कोई अनुगूँज नहीं, केवल, जो देखा

    उसके अतिरिक्त कुछ सुना भी नहीं, देखा—

    पानी का धुँधला, अनिश्चित-सा भूरापन

    रश्मियाँ परावर्तित निरर्थक क्लांत से...

    कोई अनुगूँज नहीं मेरे हित...

    सिर्फ़ एक धुँधला-सा चेहरा, वह मेरा ही,

    क्योंकि किसी और का हो नहीं सकता था।

    लगभग अदृश्य-सी चीज़ है यह,

    दिखती है मात्र तभी जब मुझे तलहटी में...

    जब मुझे अचानक तलहटी की आबदार

    चुप्पी और नक़ली उजाले में झलक जाए...

    वाह रे वाग्देवी!

    स्रोत :
    • पुस्तक : दरवाज़े में कोई चाबी नहीं (पृष्ठ 120)
    • संपादक : वंशी माहेश्वरी
    • रचनाकार : फ़र्नांदो पेसोआ
    • प्रकाशन : संभावना प्रकाशन
    • संस्करण : 2020

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