Font by Mehr Nastaliq Web

पुरबिया

purbiya

अखिलेश श्रीवास्तव

अन्य

अन्य

और अधिकअखिलेश श्रीवास्तव

    हम भगा दिए जाएँगे

    अगर कमल नहीं खिला

    चिड़िया नहीं चहचहाई

    आप मेरी इकहरी देह का गणित देखिए

    असम में सिर्फ़ एक पुरबिया घुस जाए तो

    वह सम होकर विभाजित हो जाए

    आप मेरी भाषा की आग देखिए

    मुंबईकर को बम्बईया कह दूँ

    तो जल जाएँ आठ दस झोपड़ियाँ

    यूँ समझिए हम सूरज हैं

    उगे भले पूरब में,

    ढलते हुए हमें पश्चिम पहुँचना है

    वहीं किसी स्टेशन पर अस्त हो जाना है

    हम किसी और के हिस्से की धरती पर खड़े हैं

    हमने अभी-अभी जो एक घूँट पानी पिया है

    उससे लातूर के खेत लहलहा उठते

    कुछ लोग मेरी छाती पर चढ़े हैं

    और रास्ता खोज रहे हैं मेरे फेफड़ों का

    जो साँस मैंने ली है उसमें इतनी हवा है कि

    कम से कम दो गुजराती ज़िंदा रह जाते सदियों तक

    मेरे पीछे भीड़ है

    मेरे आगे समंदर है

    पीछे से भागो-भागो... की आवाज़ है

    समंदर यही आवाज़ दुगुनी करके लौटा रहा है

    भागो भागो भागो भाग जाओ

    यहाँ तक कि बलिया से चली ट्रेन मेरठ में रुकती है

    तो आवाज़ आती है भाग जाओ

    मुझे लगता है किसी दिन आरा में मेरे पुश्तैनी गाँव का पड़ोसी

    मुझे पुरबिया-पुरबिया कहते हुए भगा दे।

    स्रोत :
    • रचनाकार : अखिलेश श्रीवास्तव
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

    रजिस्टर कीजिए