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पुरानी चिट्ठियांँ

purani chitthiyann

फैदोर त्यूतशेव

अन्य

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फैदोर त्यूतशेव

पुरानी चिट्ठियांँ

फैदोर त्यूतशेव

वह बैठी थी धरती पर, उसके आगे थी

पत्रों की ढेरी जिनको वह फाड़-फाड़कर

फेंक रही थी, क्योंकि आग जो दहक रही थी

उनके अंदर, अब ठंडी थी।

परिचित अक्षर और पंक्तियों को वह बैठी

एक अजनबी की आँखों से देख रही थी—

मृतकों की आत्माएँ जैसे देख रही हो

अपने चोले जिनमें पहले वे बसती थीं।

इन पत्रों में उसका कितना कुछ था जिसको

वह विनष्ट कर बिसरा देना चाह रही थी—

वे मधुमय क्षण जो अतीत में समा गए थे,

प्यार ख़ुशी की घड़ियाँ जो सुधि में संचित थीं।

मैं उदास चुपचाप खड़ा देखता रहा यह,

काँप रहे थे घुटने और दिल बैठ रहा था,

लगता था मेरी पलकों के ऊपर कोई

काली छाया उतर रही है।

स्रोत :
  • पुस्तक : चौंसठ रूसी कविताएँ (पृष्ठ 81)
  • रचनाकार : फैदोर त्यूतशेव
  • प्रकाशन : राजपाल एंड संस
  • संस्करण : 1964

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