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मिट्टी के बावे

mitti ke bawe

जसवंत ज़फ़र

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जसवंत ज़फ़र

मिट्टी के बावे

जसवंत ज़फ़र

और अधिकजसवंत ज़फ़र

    मिट्टी का बावा बोलेगा भी क्या

    यही कि उसकी आँखों के सामने

    उसकी माँ-बहन

    अपमानित हुई थी

    कि उसकी होने वाली पत्नी का भी

    अभी कोई पता-ठिकाना नहीं मिला।

    फुंके हुए घर के ताप से

    मिट्टी का बावा पककर

    कोमल-सा हो जाता है

    और कहता है,

    ख़बरदार मुझे मिट्टी का बावा कहा तो

    देखो, मेरे हाथों में

    हथियार उग आए हैं

    और सच में ही

    देसी-विदेशी हथियारों के हाथों में खेलता

    खिलौना बन गया है

    मिट्टी का बावा।

    मिट्टी का बावा क्या बोले

    यही कि उसकी भूख

    विवश सरकारी बंदूक़ उठाने को

    कि उसकी मिट्टी को

    लाल, नीला और ख़ाकी रोशन करके

    बना दिया बावे से प्यारा

    कि उसके पीछे से

    आदेश चढ़ते हैं, सामने तुखम उड़ते हैं।

    बूढ़े माँ-बाप के हाथों की लकीरों के साथ नक़्शे वाला

    देश की एकता-अखंडता का प्रश्न होता है

    तन पर वर्दी होती है, आगे भी बच्चों का

    अनाथों का भविष्य होता है

    पत्नी की आँखों में तैरती रहती है चिंता की डोर।

    मिट्टी का बावा क्या बोलेगा

    कि उसके सिर पर लंबे बाल या पगड़ी नहीं

    कि घर से निकलते ही, माँ विलाप करती है

    मत जाना बेटे, कहीं तुम्हें पगड़ी वाली बंदूक़ घेर ले

    कि जब कहीं वह रेल या बस के सफ़र से

    घर जीवित लौट आता है तो सब हैरानी से देखते हैं

    मानो उसके जीवित होने पर विश्वास हो।

    मिट्टी का बावा क्या बोलेगा

    यही कि वह युवा था और उसके मुँह पर दाढ़ी थी

    कि वह घर से बाहर नहीं जाता था

    चूँकि माँ को आशंका थी

    देखना तुम्हें कहीं थाना निगल जाए।

    फिर भी थानेवाले ले गए उठाकर एक रात

    पीट-पीटकर मिट्टी के बावे को

    मिट्टी बना दिया था

    और उस मिट्टी से

    एक नया बावा गढ़ दिया

    जो जंगल के रास्ते जा मिला था

    शेरों, बाघों, चीते, जैसे ख़ूँख़ारों के साथ

    अब वह नहीं, उसकी बंदूक़ बोलती है।

    अंतिम साँस तक नहीं बोलेगा

    बोलने से पहले साइनाइड चाट लेगा

    और मात्र तब

    बोलेगी तो सिर्फ़ अख़बार की सुर्ख़ी

    मिट्टी का बावा नहीं बोलेगा।

    स्रोत :
    • पुस्तक : बीसवीं सदी का पंजाबी काव्य (पृष्ठ 530)
    • संपादक : सुतिंदर सिंह नूर
    • रचनाकार : कवि के साथ अनुवादक फूलचंद मानव, योगेश्वर कौर
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2014

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